22-12-95  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

‘‘सर्व प्राप्ति सम्पन्न जीवन की विशेषता है - अप्रसन्नता मुक्त और प्रसन्नता युक्त’’

आज प्यार के सागर बापदादा अपने प्रेम स्वरूप आत्माओं को देख रहे हैं। हर एक के दिल में परमात्म प्यार समाया हुआ है। ये परमात्म प्यार प्राप्त भी एक ही जन्म में होता है। 83 जन्म देव आत्मायें वा साधारण आत्माओं द्वारा मिला। सोचो, याद करो, सारे कल्प का चक्कर लगाओ-स्वदर्शन चक्रधारी हो ना! तो एक सेकण्ड में सारे कल्प का चक्कर लगाया? 83 जन्मों में परमात्म-प्यार मिला था? नहीं मिला। सिर्फ इस संगम पर एक जन्म में परमात्म प्यार प्राप्त हुआ। तो अन्तर को जान लिया ना! आत्माओं का प्यार और परमात्म प्यार-कितना अन्तर है! साधारण आत्माओं का प्यार कहाँ ले गया? क्या प्राप्त कराया - अनुभव है ना? और परमात्म-प्यार कहाँ ले जाता? अपने स्वीट होम और स्वीट राजधानी में। आत्म-प्यार राज्य-भाग्य गँवाता है और परमात्म-प्यार राज्य-भाग्य दिलाता है, और इसी जन्म में। ऐसे नहीं कि सिर्फ भविष्य के आधार पर चल रहे हो। नहीं। डायरेक्ट परमात्म प्राप्ति तो अब है। वर्तमान के आगे भविष्य भी कुछ नहीं है। आप लोग गीत गाते हो ना कि स्वर्ग में क्या होगा और क्या नहीं होगा। और अभी का गीत क्या है? जो पाना था वो पा लिया.... वा पाना है? पा लिया। पाण्डवों ने पा लिया? गोपियों का तो गायन है ही। इस समय का गायन है कि अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खज़ाने में। देवताओं के खज़ाने में नहीं, ब्राह्मणों के खज़ाने में। तो अभी ब्राह्मण हो ना? तो अनुभव करते हो कि अप्राप्त नहीं कोई वस्तु? और ये प्राप्तियाँ अविनाशी हैं, अल्पकाल की नहीं हैं। तो जिसको सर्व प्राप्तियाँ हैं उसके जीवन में क्या विशेषता होगी? सब प्राप्तियाँ हैं, एक भी कम नहीं है तो उसकी चलन और चेहरे में क्या विशेषता दिखाई देगी? सदा प्रसन्नता। कुछ भी हो जाये लेकिन सर्व प्राप्तिवान अपनी प्रसन्नता छोड़ नहीं सकता। अप्रसन्नता कभी भी होती है तो चेक करो कि अप्राप्ति का अनुभव होता है या सर्व प्राप्तियों का?

आज बापदादा ने बहुत ही, सेवाकेन्द्र और उप-सेवाकेन्द्र देखे, विदेश में नहीं, देश में सेवाकेन्द्र देखे। सेवाकेन्द्र में विशेष तो सेवाधारी हैं, तो आज चक्कर लगाते हुए सेवाधारी और सेवास्थान, दोनों देखे। हर एक स्थान में, चाहे छोटे, चाहे बड़े, सभी में चेक किया कि सेवाधारी तन से, मन से, धन से और सेवा के सम्बन्ध-सम्पर्क से कितने प्रसन्न हैं? क्योंकि विशेष तो यही बातें हैं ना! तो क्या देखा?

तन तो सबके पुराने हैं ही, चाहे जवान हैं, चाहे बड़े हैं, छोटे और ही बड़ों से भी कहाँ-कहाँ कमज़ोर हैं, चाहे बीमारी बड़ी है लेकिन बीमारी की महसूसता कि मैं कमज़ोर हूँ, मैं बीमार हूँ - ये बीमारी को बढ़ा देती है। क्योंकि तन का प्रभाव मन पर आ गया तो डबल बीमार हो गये। तन और मन दोनों से डबल बीमार होने के कारण बार-बार सोल कान्सेस के बजाय बीमारी कान्सेस हो जाते हैं। तो क्या देखा? कि तन से तो मैजारिटी, बीमार कहो या हिसाब-किताब चुक्तु करना कहो, कर रहे हैं, लेकिन 50 परसेन्ट डबल बीमार और 50 परसेन्ट सिंगल बीमार हैं। बाकी होना क्या चाहिए? कभी भी मन में बीमारी का संकल्प नहीं लाना चाहिये-मैं बीमार हूँ, मैं बीमार हूँ..... लेकिन होता क्या है? ये पाठ पक्का हो जाता है कि मैं बीमार हूँ.... कभी-कभी किसी समय बीमार होते नहीं हैं लेकिन मन में खुशी नहीं है तो बहाना करेंगे कि मेरे कमर में दर्द है। क्योंकि मैजारिटी को या तो टांग दर्द, या कमर का दर्द होता है, कई बार दर्द होता नहीं है फिर भी कहेंगे मेरे को कमर में दर्द है। अभी उसकी चेकिंग कैसे हो? डॉक्टर्स के पास इसका कोई थर्मामीटर है, जो कमर दर्द है या नहीं वो चेक कर सके? एक्सरे कराओ, ये कराओ, वो तो और ही खर्चा लगाओ। तो क्या देखा, तन के बारे में सुनाया। कई सेवाधारी ऐसे दिखाई दिये। सेवाधारी आप सभी हो। ऐसे नहीं समझना सिर्फ टीचर्स की बात है। सेवाधारी आप प्रवृत्ति वाले भी हो ना? कि जो सेन्टर्स पर रहते हैं वो सेवाधारी हैं? आप लोग प्रवृत्ति में रहने वाले भी सेवाधारी हो। कभी आपके घरों का भी चक्कर लगायेंगे। देखेंगे कि कैसे सोते हो, कैसे उठते हो? डबल बेड है, सिंगल बेड है? अच्छा ये तो आज के चक्कर की बात है।

आजकल के हिसाब से दवाइयाँ खाना ये बड़ी बात नहीं समझो। क्योंकि कलियुग का वर्तमान समय सबसे शक्तिशाली फ्रूट ये दवाइयाँ हैं। देखो कोई रंग-बिरंगी तो हैं ना। कलियुग के लास्ट का यही एक फ्रूट है तो खा लो प्यार से। दवाई खाना ये बीमारी याद नहीं दिलाता। अगर दवाई को मज़बूरी से खाते हो तो मज़बूरी की दवाई बीमारी याद दिलाती है और शरीर को चलाने के लिये एक शक्ति भर रहे हैं, उस स्मृति में खायेंगे तो दवाई बीमारी याद नहीं दिलायेगी, खुशी दिलायेगी तो बस दो-तीन दिन में दवाई से ठीक हो जायेंगे। आजकल के तो बहुत नये फैशन हैं, कलियुग में सबसे ज्यादा इन्वेन्शन आजकल दवाइयाँ या अलग-अलग थेरापी निकाली है, आज फलानी थेरापी है, आज फलानी, तो ये कलियुग के सीजन का शक्तिशाली फल है। इसलिए घबराओ नहीं। लेकिन दवाई कांसेस, बीमारी कांसेस होकर नहीं खाओ। तो तन की बीमारी होनी ही है, नई बात नहीं है। इसलिए बीमारी से कभी घबराना नहीं। बीमारी आई और उसको फ्रूट थोड़ा खिला दो और विदाई दे दो। अच्छा ये हुआ तन की रिज़ल्ट। फिर और क्या देखा?

मन, मन में क्या देखा? एक बात खुशखबरी की ये देखी कि मैजारिटी हर एक सेवाधारी के मन में बाप का प्यार और सेवा का उमंग दोनों हैं। बाकी 25 परसेन्ट कोई मज़बूरी से चल रहा है, वो छोड़ो। लेकिन मैजारिटी के मन में ये दोनों बातें देखी। और ये भी देखा कि बाप से प्यार होने के कारण याद में भी शक्तिशाली हो बैठने का, चलने का, सेवा करने का अटेन्शन बहुत देते हैं लेकिन खेल क्या होता है कि चाहते हैं कि याद की सीट पर अच्छी तरह से सेट होकर बैठ जायें लेकिन थोड़ा टाइम तो सेट होते हैं फिर हिलना-डुलना शुरू होता है। जैसे बच्चा होता है, उसको ज्यादा टाइम सीट पर बिठाओ तो हिलेगा ज़रुर। तो मन भी अगर कन्ट्रोल में, ऑर्डर में नहीं है तो थोड़ा टाइम तो बहुत अच्छे बैठते हैं, चलते हैं, सेवा भी करते हैं लेकिन कभी सेट होते हैं, कभी अपसेट भी हो जाते हैं। कारण क्या है? होना सेट चाहते हैं लेकिन अपसेट क्यों होते हैं? कारण क्या है? एकाग्रता की शक्ति, दृढ़ता की शक्ति, उसकी कमी है। प्लैन बहुत अच्छा सोचते हैं, ऐसे बैठेंगे, ये अनुभव करेंगे फिर ये सेवा करेंगे, फिर ऐसे चलेंगे, लेकिन कर्म करने में या बैठे-बैठे भी दृढ़ता की शक्ति कम हो जाती है। और बातों में मन-बुद्धि बट जाते हैं। चाहे काम में बिज़ी नहीं है लेकिन व्यर्थ संकल्प ये सबसे बड़ा काम है जो अपने तरफ खींच लेता है। तो स्थूल काम नहीं भी हो लेकिन दृढ़ता की शक्ति बंटने के कारण मन और बुद्धि सीट पर सेट होने के बजाए हलचल में आ जाते हैं।

बापदादा ने आप सबको जो काम दिया था वो देखा। बापदादा के पास सब चिटकियाँ पहुँची। लेकिन कई बच्चे बड़े चालाक हैं। चालाकी क्या करते हैं? चिटकी लिखते हैं लेकिन नाम नहीं लिखते। ऐसे समझकर करते हैं बाबा तो जानता है। जानता है, फिर भी अगर काम दिया है तो काम तो पूरा करो ना। टीचर अगर कहे ये लिखकर आओ और टीचर को कहो कि आप तो जानते हो ना - मुझे ये लिखना आता है, तो टीचर मानेगा? तो कई तो नाम ही नहीं लिखते। लेकिन जो भी जिस ग्रुप में काम दिया है, मैजारिटी सबकी ये खुशी की बात देखी, कि सबने लिखा है कि हम डायमण्ड जुबली तक करके दिखायेंगे। ये मैजारिटी का है। आप सबका भी है? जीवनमुक्त हो जायेंगे? अगर सभी बातों से मुक्त हो गये तो क्या हो जायेंगे? जीवनमुक्त हो जायेंगे ना। तो सभी ने अपनी हिम्मत, उमंग अच्छा दिखाया है, चाहे फॉरेन वालों ने, चाहे भारत वालों ने, उमंग-उत्साह सभी का अच्छा है। कोई-कोई ने, बहुत थोड़ों ने लिखा है, कि हमको टाइम लगेगा। लगने दो उन्हों को। आप लोग तो जीवनमुक्त हो जाओ। तो रिज़ल्ट में देखा कि सभी को उमंग है कि डायमण्ड जुबली में कुछ करके दिखायें। लेकिन बापदादा ने देखा कि जितना अपने आपको डायमण्ड बनाने का उमंग-उत्साह है, उतना ही डायमण्ड जुबली वर्ष में सेवाओं के प्लैन भी बहुत फास्ट बनाये हैं। फास्ट बनाये हैं इसमें बापदादा खुश है लेकिन ऐसा नहीं कहना कि बहुत सेवा का बोझ था ना इसीलिए थोड़ा नीचे-ऊपर हो गया। ये बापदादा नहीं चाहते। सेवा जो स्वयं को वा दूसरे को डिस्टर्ब करे वो सेवा नहीं है, स्वार्थ है। और निमित्त कोई न कोई स्वार्थ ही होता है इसलिए नीचे-ऊपर होते हैं। चाहे अपना, चाहे दूसरे का स्वार्थ जब पूरा नहीं होता है तब सेवा में डिस्टर्बेन्स होती है। इसलिए स्वार्थ से न्यारे और सर्व के सम्बन्ध में प्यारे बनकर सेवा करो, तब जो संकल्प किया है वा लक्ष्य रखा है कि डायमण्ड जुबली में डायमण्ड बन डायमण्ड जुबली मनायेंगे, वह पूरा हो सकेगा। आधा नहीं याद करना। कई ऐसे जवाब देते हैं, कहते हैं डायमण्ड जुबली तो मनाने की थी तो मनाया, उसमें बिज़ी हो गये। लेकिन बापदादा के दोनों शब्द याद रखना। आधा नहीं। डायमण्ड बन, डायमण्ड जुबली मनानी है। सिर्फ मनानी है नहीं, बनकर मनानी है। तो मतलब का अर्थ नहीं लेना - मना लिया ना। लेकिन बनकर मनाया? बनकरके मनाना - ये है डायमण्ड जुबली का लक्ष्य। तो आधा लक्ष्य नहीं पूरा करना। डबल है - बनना और मनाना। सिर्फ बनना नहीं, सिर्फ मनाना नहीं। दोनों साथ-साथ हो। और आप सबको मालूम है कि जब आप डायमण्ड जुबली के वा डायमण्ड बनने के प्लैन बना रहे हो तो आप सबसे पहले माया भी अपना प्लैन बना रही है। इसलिए ये नहीं कहना - क्या करें बाबा, हिम्मत कम हो गई, माया बहुत तेज है, माया को अपने पास रखो। राज्य आप करेंगे और माया को बाबा सम्भालेंगे! राज्य तो आपको करना है ना। मायाजीत जगतजीत बनता है, तो माया को जीतने के बिना जगतजीत कैसे बनेंगे? इसीलिये चारों ओर अटेन्शन प्लीज़। समझा? अच्छा।

चक्कर का आधा सुनाया, आधा फिर सुनायेंगे। सेन्टर कोई-कोई तो बहुत अच्छे सजे-सजाये और कोई सिम्पल तो कोई बहुत रॉयल, कोई बीच के भी थे। ज्यादा हैं जो समझते हैं कि रॉयल लगे, कोई वी.आई.पी. आवे तो उसको लगे कि सेन्टर अच्छा है, लेकिन अपना (ब्राह्मणों का) आदि से अब तक का नियम है कि न बिल्कुल सादा हो, न बहुत रॉयल हो। बीच का होना चाहिये। ब्रह्मा ने तो बहुत साधारण देखा और रहा। लेकिन अभी साधन हैं, साधन देने वाले भी हैं फिर भी कोई भी कार्य करो तो बीच का करो। ऐसा भी कोई न कहे कि यह क्या लगा दिया है - पता नहीं, और न कोई कहे कि ये तो अभी राजाई ठाठ हो गया है। तो आज का पाठ क्या है? मुक्त तो सबसे हो गये ना! सबसे मुक्त होने की प्रतिज्ञा हो गई है ना! पक्की है या घर जायेंगे तो कहेंगे कि मुश्किल है! पक्का रहना। माया को डायमण्ड जुबली में मज़ा चखाकर दिखाओ। मास्टर सर्वशक्तिमान हो, कम तो नहीं हो!

अच्छा, डबल फोरेनर्सभी बहुत आये हैं। स्थापना के कार्य की डबल शोभा-डबल विदेशी हैं। बापदादा जानते हैं कि कितने मेहनत से, युक्ति से यहाँ पहुँचते हैं। अगर लगन कम हो तो पहुँचना भी मुश्किल लगे। एक तरफ बापदादा सुनते हैं कि मनी डाउन हो गई है और दूसरे साल देखते हैं तो और भी विदेशी ज्यादा आ गये हैं। तो ये हिम्मत है। रशिया का ग्रुप भी आया है ना! रशिया वालों ने टिकेट कहाँ से लाई? इन्हों की कहानियाँ बहुत अच्छी सुनने वाली हैं। टिकेट कैसे इकट्ठी करते हैं, उसकी कहानी बहुत अच्छी है। ये तो सब होना ही है। जब है ही कागज़, पेपर ही तो है, चाहे डालर कहो, चाहे पौण्ड कहो, है तो पेपर ही, तो पेपर कहाँ तक चलेगा! सोने का मूल्य है, हीरे का मूल्य है, पेपर का क्या है? मनी डाउन तो होनी ही है। और आपकी मनी सबसे ज्यादा मूल्यवान है। जैसे शुरू में अखबार में डलवाया था ना कि ओम् मण्डली-रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। कमाई का साधन कुछ नहीं था। ब्रह्मा बाप के साथ एक-दो समर्पण हुए और अखबार में डाला रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। तो अभी भी जब चारों ओर ये स्थूल हलचल होगी फिर आपको अखबार में नहीं डालना पड़ेगा। आपके पास अखबार वाले आयेंगे और खुद ही डालेंगे, टी.वी. में दिखायेंगे कि ब्रह्माकुमारीज़ रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। क्योंकि आपके चेहरे चमकते रहेंगे, कुछ भी हो जाये। दिन में खाने की रोटी भी नहीं मिले तो भी आपके चेहरे चमकते रहेंगे। तो चारों ओर होगा दु:ख और आप खुशी में नाचते रहेंगे। इसी को ही कहते हैं मिरूआ मौत मलू का शिकार। इसलिए बापदादा ने आज कहा कि ब्राह्मण जो सच्चे हैं, ब्राह्मण जीवन में श्रेष्ठ जीवन के लक्ष्य वाले हैं उसकी विशेषता है प्रसन्नता। चाहे कोई गाली भाr दे रहे हो तो भी आपके चेहरे पर दु:ख की लहर नहीं आनी चाहिये। प्रसन्नचित्त। गाली देने वाला भी थक जायेगा.., हो सकता है? यह नहीं कि उसने एक घण्टा बोला, मैंने सिर्फ एक सेकण्ड बोला। सेकण्ड भी बोला या सोचा, शक्ल पर अप्रसन्नता आई तो फेल हो गये। इतना सहन किया ना, एक घण्टा सहन किया, फिर गुब्बारे से गैस निकल गई। तो गैस वाले गुब्बारे नहीं बनना। और चाहिये ही क्या? बाप मिला, सब कुछ मिला - गीत तो यही गाते हो ना। तो ऐसे टाइम पर ऐसी-ऐसी बातें याद करो तो चेहरा नहीं बदलेगा। ऐसे नहीं उसके आगे जोर-जोर से हंसने लग जाओ, तो वो और ही गर्म हो जाये। प्रसन्नता अर्थात् आत्मिक मुस्कराहट। बाहर की नहीं, आत्मिक। तो आज का पाठ क्या रहा? सदा अप्रसन्नता मुक्त और प्रसन्नता युक्त, डबल - समझा? अच्छा।

पंजाब

पंजाब ने कोई शेर मधुबन तक लाया है? चीता लाये हैं या शेर लाये हैं? कि अभी शेर को अच्छी तरह से सजाते हो! छोटे-छोटे तो आये हैं। फिर भी पंजाब की सेवा में फर्क तो है। तो वो भी हो जायेगा।

इन्दौर

इन्दौर क्या तैयार कर रहे हैं? क्या नया प्लैन बनाया है जो मधुबन तक बड़े ते बड़े पहुँचे? डायमण्ड जुबली में लास्ट में एक ऐसा प्रोग्राम करो जो सब तरफ के विशेष वी.आई.पी. पहुँचे। आई.पी. नहीं, वी.आई.पी.। चाहे विदेश, चाहे देश - दोनों तरफ से वी.आई.पी. ग्रुप पहुँचे। चाहे थोड़ी संख्या हो लेकिन हो सारा ग्रुप वी.आई.पी. का। ऐसे नहीं बापदादा कहते हैं कि हज़ारों ले आओ, वो तो हो नहीं सकता। थोड़े लाओ लेकिन क्वालिटी लाओ जो एक-एक स्वयं सेवा करे। तैयार कर रहे हो ना? सेवा तो वृद्धि को प्राप्त हो रही है और होती रहेगी। होनी ही है। सिर्फ आप डायमण्ड बन जाओ तो चारों ओर आपकी चमक खींच करके लायेगी।

आसाम, गोहाटी

गोहाटी वाले क्या विशेषता कर रहे हैं? नया प्लैन क्या बनाया है? गोहाटी का कोई मिनिस्टर आया है? (नहीं) तो लाओ ना। गोहाटी का मिनिस्टर रह जावे तो उलहना मिलेगा।

बम्बई

बाम्बे वाले क्या कर रहे हैं? क्या नया प्लैन बनाया है? देखो भाषण किया, मिनिस्टर आया, प्रेज़ीडेन्ट आया, वो तो आये और गये लेकिन ऐसा समीप लाओ जैसे मॉरीशियस वालों ने समीप लाकर खुद अपनी हिम्मत से प्रोग्राम बनाया और इण्डिया गवर्नमेंट ने पूरी मदद दी। ये पहला हिम्मत वाला है। नहीं तो विदेश वाले कहते हैं आना तो चाहते हैं, आप लोग करो। वो नहीं होना है लेकिन जैसे उसने हिम्मत रखा, अपना प्रोग्राम दिया, ऐसे विदेश से अपना प्रोग्राम बनाकर यहाँ के मिनिस्ट्री की आँख खोले कि दूर-दूर से आते हैं और हम यहीं रहे हुए हैं। तो मॉरीशियस को, चाहे छोटा है मॉरीशियस लेकिन हिम्मत में छोटे ने ही तो कमाल की। मॉरीशियस को इस सेवा की मुबारक हो। अच्छा है, देखो ये किसी को भी दृष्टान्त तो दे सकते हो ना! एक्जाम्पल दे सकते हो कि जैसे ये आया वैसे बड़े को तो और ही ज्यादा मदद मिलेगी। तो मॉरीशियस ने आई.पी. के आने का दरवाजा खोला - ये अच्छा किया।

अच्छा, बाम्बे वाले क्या करेंगे? (पीस पार्क बनायेंगे) पीस पार्क बनायेंगे, वो भी अच्छा है। कोई कमाल करके दिखाओ। पीस पार्क बनाना ये भी अच्छी हिम्मत रखी। लेकिन डायमण्ड जुबली में कोई नवीनता करो। सेवा करके कोई शेर को ले आओ..... बॉम्बे के शेर हैं बड़े-बड़े नामीग्रामी इण्डस्ट्रियलिस्ट। ऐसे कोई लाओ जो एक अनेकों को जगाये और सेवा में निमित्त बने। तो बाम्बे वाले ऐसे नामीग्रामी को लाना। ऐसा लाओ जो आगे भी सम्पर्क में आये और लाये। जैसे हैदराबाद में राजू का छोटा मिसाल देखा ना, था तो बहुत छोटा लेकिन आया भी और लाया भी। ऐसा कोई लाओ। नाम तो बाला करके गया ना।

अच्छा, इसी की ट्रेनिंग हो रही है। (ज्ञान सरोवर में सेल्फ मैनेजमेंट लीडरशिप ट्रेनिंग का कार्यक्रम चल रहा है) देखेंगे, ट्रेनिंग तो की, ट्रेनिंग का फल बापदादा के आगे कौन सा लाते हो? ट्रेनिंग कराने वाले डायमण्ड जुबली में बापदादा के आगे फल लाओ। समझा? सेवा बहुत अच्छी है लेकिन अब सम्बन्ध-सम्पर्क में लाओ, ज्ञान-योग में लाओ। सिर्फ अच्छा है, अच्छा है - यहाँ तक ये फल नहीं हो। ये तो छोटा सा एक अंगूर है। बड़ा फल लाओ। कहाँ भी जायेंगे, किसको फल देंगे तो क्या एक अंगूर ले जायेंगे? अगर गिफ्ट देंगे तो कुछ बड़ा फल लायेंगे ना। अच्छा है, कर रहे हो लेकिन इसी लक्ष्य से करो कि डायमण्ड बन और डायमण्ड जुबली में नवीनता करके दिखायेंगे। इसको कहा जाता है ट्रेनिंग की सफलता। चांस तो अच्छा मिला है। अभी देखेंगे कितने फ्रूट थाली भरकर आते हैं या एक फ्रूट आता है या एक अंगूर आता है? अच्छा।

केरला, कर्नाटक

केरला क्या करेगा? केरला की विशेषता क्या होती है? (पढ़े-लिखे बहुत होते हैं) तो इस पढ़ाई में नहीं? सेन्टर तो होने ही हैं। कृष्णा अय्यर जैसा, वो केरला ने नहीं निकाला वो दिल्ली ने निकाला। ऐसा कोई तैयार करो। ऐसे ही चार-पांच का ग्रुप तैयार करो। अच्छा, केरला में नारियल के पेड़ बहुत होते हैं ना! तो आई.पीज.का बिगड़े हुए को सुधारना यह सबसे बड़ी सेवा है। 79 पेड़ पूरा ले आओ। कृष्णा अय्यर छोटा माइक तो है ही, आदि से अन्त तक सेवा में सहयोगी है और रहेगा। अच्छा है। जैसे कृष्णा अय्यर है, मद्रास का गवर्नर है ऐसे निकालो। और ऐसों का संगठन करो फिर देखो आप आराम से बैठे रहेंगे और वो आवाज़ फैलाते रहेंगे। जैसे आजकल की जो नई-नई टीचर्स आती हैं ना वो देखती हैं कि पुरानी दादियाँ तो बड़े आराम से रहती हैं और हम लोगों को भाग-दौड़ कराती हैं। तो आप लोगों को तैयार किया ना तो वो आराम से बैठी हैं। तो आप भी ऐसे तैयार करो जो आप आराम से बैठो। अच्छा।

आन्ध्र प्रदेश

आन्ध्र प्रदेश से एक राजू तो निकला लेकिन वो जल्दी चला गया। अभी आन्ध्र प्रदेश को और ग्रुप तैयार करना चाहिये। क्योंकि आन्ध्र प्रदेश में आई.पी. बहुत हैं। चाहे कहाँ भी मिनिस्टर बन जाते हैं लेकिन फिर भी अपने देश को वैल्यु देते हैं। आन्ध्र प्रदेश का कोई मिलेगा ना तो उसको रिगार्ड से मिलते हैं। देश का नशा होता है ना। तो आन्ध्रा को भी ग्रुप तैयार करना चाहिये। सेन्टर बढ़ रहे हैं, गीता पाठशालायें बढ़ रहीं हैं, ये तो होना ही है, ये अभी बड़ी बात नहीं है। कोई नवीनता करो। बढ़ाओ, और भी गीता पाठशालायें, सेन्टर बढ़ाओ, लेकिन साथ-साथ माइक भी तैयार करो जो प्रत्यक्षता करें। अच्छा।

बेलगाम

बेलगाम क्या कर रहा है? कितने आई.पी. तैयार किये हैं? कम से कम एक कंगन तो तैयार करो। माला छोड़ो। अच्छा।

डबल विदेशी

(यू.के., जर्मनी, सभी से हाथ उठवा कर बापदादा मिल रहे हैं।) फ्रेंकफर्ट ने अपना वायदा तो पूरा कर लिया। बापदादा फ्रेंकफर्ट वालों की हिम्मत पर खुश है और सुदेश बच्ची भी सेवा मन से कर रही है इसीलिए उसको भी मुबारक। सेवा साधारण करना ये कोई बड़ी बात नहीं है, बिगड़ी को बनाना, अनेकता में एकता लाना ये है बड़ी बात। तो जर्मनी वालों प्रति आप सभी भी मुबारक की ताली बजाओ। (स्पेन, .. फ्रांस, हालैण्ड) हॉलैंड भी अच्छा चल रहा है। (साउथ अफ्रीका, मलेशिया, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, न्युजीलैण्ड) अच्छा, ऑस्ट्रेलिया वाले खुश हैं, सन्तुष्ट हैं? यस या नो बोलो। (यस)

देखो कहाँ से भी आये हो लेकिन डबल विदेशी सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक (विक्ट्री का) लगा हुआ देखो। क्योंकि आप लोग बाप के और सर्व ब्राह्मणों के प्यारे हो। तो हम विजयी हैं, विजयी थे और विजयी रहेंगे। ये विजय का तिलक सदा अपने मस्तक में देखो। बहुत-बहुत-बहुत लक्की हो जो कोने-कोने से बापदादा ने आप सबको निकाला है। प्यार से ढूँढ कर आपको अपना बनाया है। देखो कितने कोने-कोने में हो लेकिन बाप ने तो पहचान लिया ना! इसलिए सदा विजयी हैं - ये नशा प्रैक्टिकल में अनुभव करो। सिर्फ मुख से नहीं कहना, मुख से कहो विजय और हार खा रहे हो, ऐसे नहीं। हार हो ही नहीं सकती, हैं ही विजयी। तो विजयी का नशा डबल विदेशियों को सहज और सदा रहे। समझा?

भारत वालों से

आप सभी ने देखा, आपका परिवार कितना बड़ा है! पंजाब वालों ने देखा... बाम्बे वालों ने देखा.... सभी भारत वालों को ये खुशी होती है कि हमारा बाबा का स्थान कोने-कोने में है। जहाँ जाओ वहाँ फ़लक से कह सकते हो कि हमारा घर यहाँ भी है, यहाँ भी है। जहाँ जाओ अपना घर है। तो भारत वालों को डबल विदेशियों को देखकर खुशी होती है? अच्छा!

चारों ओर के बापदादा के प्रेम स्वरूप आत्माओं को, सदा स्वयं को अप्रसन्नता से मुक्त करने वाले तीव्र पुरूषार्था आत्माओं को, सदा याद और सेवा के बैलेन्स द्वारा सेवा की सफलता पाने वाले भाग्यवान आत्माओं को, सदा बाप को प्रत्यक्ष करने के उमंग-उत्साह में रहने वाले देश-विदेश दोनों के सर्व बच्चों को, बाप को अपनी खुशखबरी लिखने वाले, अपनी सेवा का उमंग रखने वाले ऐसे बाप के सदा स्नेही और समीप बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

(विदेश के 4 भाई फिल्म निकाल रहे हैं)

अच्छा, ये ग्रुप भी सेवा के लिए आये हैं। सभी सेवा से खुश हैं? हिम्मत है ना! क्या होगा, कैसे होगा, ये नहीं सोचो। अच्छा है, अच्छा होना ही है। जो श्रेष्ठ स्मृति से कार्य करते हो वो सदा ही अच्छा है। तो ये कभी नहीं सोचो पता नहीं क्या होगा, पता है अच्छा होगा। समझा? अच्छा है हिम्मत बहुत अच्छी रखी। जहाँ हिम्मत है पावरफुल वह है जो फौरन परखकर फैसला कर दे। 81 वहाँ मदद है। अच्छा।

दादियों से

जब आप और ये (दादी और दादी जानकी) मिलते हो तो आपको क्या लगता है? (दादियों ने कहा-बाबा आपको क्या लगता है?) बाप को तो अच्छा लगता है। आपको क्या लगता है? (बाबा ने अच्छी जोड़ी तैयार की है, देश-विदेश अलग होते भी साथ हैं) ये भी ड्रामा में पार्ट है। फिर भी ब्राह्मण परिवार के फाउण्डेशन हो ना। तो आप लोगों को भी अच्छा लगता है ना। बापदादा अपने निमित्त फाउण्डेशन वाली आत्माओं को अपने से भी आगे रखता है। क्योंकि अभी देखो बाप तो है ही निराकार, ब्रह्मा बाप भी आकारी हो गया, अभी साकार में सुनना पड़े, सुनाना पड़े, देखना पड़े, देना पड़े - इसके लिए निमित्त तो ये लोग हैं ना। और सहज चल रहे हैं ये देख आप सभी भी खुश होते हो ना? देखो आप द्वारा (दादी जानकी) ये विदेश सेवा नूँधी हुई थी तो ड्रामा को कोई बदल नहीं सकता। आपको जाना पड़ा और निमित्त बनना पड़ा। विदेश के लिए जरूरी है ना? (बाबा की सकाश है) बापदादा तो अलग हो ही नहीं सकता, ऐसा चिपका हुआ है। क्योंकि आप लोगों को सारा दिन यही कहना पड़ता कि बाबा यह करते, बाबा यह कहते.... बाबा-बाबा ही निकलता रहता है ना। याद कराने के लिए भी कहना पड़ता कि शिवबाबा याद है? कोई रो करके आये और आप बाबा-बाबा कहकर उसको हँसा देते हो। ठीक है? देखो बहुत छोटा सा ग्रुप है लेकिन बहुत काम का है। कितने थोड़े गिनती के हैं। अभी डायमण्ड जुबली तो है ही। लेकिन इस बारी बापदादा नम्बर देंगे कि रीयल में डायमण्ड कितने बनें? देखेंगे विदेश जीतता है या देश? और इसमें भी युवा ज्यादा नम्बर लेते हैं, प्रवृत्ति वाले लेते हैं वा युवा कुमारियाँ लेती हैं? बापदादा को तो खुशी है जो भी नम्बर लेवे। लेकिन इसमें साथियों का भी सर्टिफिकेट चाहिए। ऐसे नहीं अपने आप सिर्फ कहो मैं तो ठीक हूँ। नहीं, सर्टिफिकेट चाहिये। देखेंगे कितने निकलते हैं? वृद्धि तो होनी ही है।

अच्छा। ओम् शान्ति।